पक्षपात पर कविता : अधूरा सपना

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सुबह से हो गई शाम एक दिन आंख ज़ोर से फड़की।
रात को देखा स्वप्न बन गया लड़के से मैं लड़की॥
जल्दी करी सुबह फिर भी लग गई देर सजने में।
भाग न पाया हाई–हील से बस निकली इतने में॥
देर से दफ़्तर पहुंचा लेकिन सर ने आज न डाँटा।
प्यार से पूछा देर हुई क्यों मेरा सुख–दुख बाँटा॥
पहला दिन जीवन का मैंने बौस की डाँट न खाई।
वरना सुबह–सुबह ही मेरी होती रोज खिंचाई॥
नहीं हुआ विश्वास मुझे लगता था धोखा खाया।
डुप्लीकेट बौस हैं या मैं और कहीं पर आया॥

सीट–वर्क तो दूर पर्सनल काम भी नहीं कराया।
कम–इन कहा मुझे केबिन में अपने पास बुलाया॥
फिर धीरे से बोले मेरी बात गौर से सुनना।
औरों जैसा नहीं हूं मैं टेंसन बिल्कुल मत करना॥
सॉफ्ट–कार्नर देख साहब का खोला मैंने लौक।
लोग बुराई करें तुम्हारी दे दिया उनको शॉक॥
हुआ शॉक का असर कहा तुम छोड़ो सारे काम।
कौन–कौन क्या बातें करते सुनो लगाकर कान॥
नहीं काम की चिंता अब तो यों ही दिन कट जाते।
मैं करता आराम काम साहब खुद ही निपटाते॥
फिर भी मान और सम्मानों पर पहला हक बनता।
सर का राइट–हैंड उसी का भत्ता मुझको मिलता॥

टूटा स्वप्न अनूठा मुझको फिर से निद्रा आई।
जागा सुबह कंपकंपी छूटी दफ़्तर की सुध आई॥
ड्राइक्लीनिंग करी बहुत जल्दी भी घर से निकला।
फिर भी हो गया लेट सीढ़ियों से मैं उल्टा फिसला॥
टूटा फूटा रूम में पहुंचा सर ने तभी बुलाया।
वन–आवर का दिया लैक्चर अक्ल का पाठ पढ़ाया॥
उतरा नहीं खुमार अभी तक रहा स्वप्न का ध्यान।
साहब जी से कर बैठा मैं सीधे–सीधे बयान॥

कल की ही तो बात है सर तुम मेरे ही गुण गाते।
आज हो गया क्या जो मुझको कोसों दूर भगाते॥
बस फिर क्या मैंने देखी सर के गुस्से की बाढ़।
आव न देखा ताव उन्होंने मारी मुझे लताड़॥
सारे अवगुण पहले ही थे अब तमीज़ भी भूले।
कर दूंगा सी–आर लाल जो फिर तुम कह कर बोले॥
धेले–भर का काम न करते बातों का खाते हो।
कार्यालय मुझसे चलता तुम मुझको समझाते हो॥

देख साहब को बेकाबू मैं बन गया भीगी बिल्ली।
सोचा गई नौकरी अब तो छोड़नी होगी दिल्ली॥
चुप ही रहा सोच कर मैं अपना नुकसान करूंगा।
फिर वही सपना देखूंगा तब इनसे बात करूंगा॥
फड़की नहीं आंख दोबारा बहुत करी थी ट्राई।
मैडीकल स्टोर पर पूछा मिली न कोई दवाई॥
लाखों किए उपाय मगर वो सपना फिर नहीं आया।
फिर न मिले सपने में "कौशिक" रह–रह कर पछताया॥

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कविता सुनें : Watch the Poem मैं और मेरी जया दोनों खुशहाल एक था हमारा नटखट गोपाल चौथी में पढ़ता था उम्र नौ साल जान से प्यारा हमें अपना लाल तमन्ना थी मैं खूब पैसा कमाऊँ अपने लाडले को एक बड़ा आदमी बनाऊं उसे सारे सुख दे दूँ ऐसी थी चाहत और देर से घर लौटने की पड़ गई थी आदत मैं उसको वांछित समय न दे पाता मेरे आने से पहले वह अक्सर सो जाता कभी कभी ही रह पाते हम दोनों साथ लेशमात्र होती थीं आपस में बात एक दिन अचानक मैं जल्दी घर आया बेटे को उसदिन जगा हुआ पाया पास जाकर पूछा क्या कर रहे हो जनाब तो सवाल पर सवाल किया पापा एक बात बताएँगे आप सुबह जाते हो रात को आते हो बताओ एक दिन में कितना कमाते हो ऐसा था प्रश्न कि मैं सकपकाया खुद को असमंजस के घेरे में पाया मुझे मौन देख बोला क्यों नहीं बताते हो आप एक दिन में कितना कमाते हो मैंने उसे टालते हुए कहा ज्यादा बातें ना बनाओ तुम अभी बच्चे हो पढाई में मन लगाओ वह नहीं माना, मेरी कमीज खींचते हुए फिर बोला जल्दी बताओ जल्दी बताओ मैंने झिड़क दिया यह कहकर बहुत बोल चुके अब शांत हो जाओ देखकर मेरे तेवर, उसका अदना सा मन सहम गया मुझ

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